रूप देश का बदलें हम

आते युग के ध्वजधारी हैं नये क्षितिज के तारे हम !
खाकर कसम रुधिर की अपने रूप देश का बदले हम ।। ध्रु. ।।

आदिम कवि ने बड़ी बखानी भूमि यही सुजला सुफला
हालत उस की आज देखकर व्यथित चित्त बनता शोला
देखें सपने वही सुजलता, वही सुफलता लाने के
भागिरथी को प्रसन्न कर लें कष्टकुसुम अर्पित कर के
स्फूर्तिदीप फिर घर घर में मन मन में आज जलायें हम ।। १ ।।

यंत्र देव के पूजक हैं हम, पूजक वेदऋचाओं के
शास्त्री शास्त्रों के होकर भी मुग्ध रसीले काव्यों के
खड़ा हिमालय देव हमारा, देव समिन्दर गहन महा
बिम्ब भव्यता का जिस जिस में उपास्य मिलता हमें वहाँ
उन सब की पूजाओं में से बनें शक्ति के साधक हम ।। २॥

नयनों में है मूर्ति समायी प्यारी भारत माता की
शुद्ध मनोमंदिर में अपने करें स्थापना बस् उस की
स्वयंप्रकाशित जुगनू हैं हम दुष्ट ग्रहों के प्रतिद्वन्द्वी
स्वप्नपूर्ति कर ही लेंगे हम मौत उठावे फिर आँधी
त्यागपत्र लिख दिया आयु का, उस प्रण को ना भूलें हम ।।३॥