जाग हे शार्दूल (हिंदी)

जाग हे शार्दूल जाग, जाग हे पुराणपुरुष
सदियों की निंद छोड, आत्मवंचना को त्याग,
जाग हे पुराणपरुष, जाग हे शार्दूल जाग॥ध्रु.॥

शृंखला में बद्ध हो, विद्ध हो परचक्र से
मूर्छना से बेखबर, और गलित गात्र से
वेदि में अंगार तेरे, छानलो ये राखराख॥१॥

धर्म तेरे प्राण है, अध्यात्मही अभिमान है
वेद तेरी शान और, वेदान्तही पहचान है
आत्मग्लानि से जगो, तब चलेंगे साथ भाग॥२॥

तू स्वयं नचिकेत है, हे सत्यव्रत, हे धैर्यधर
तम से तेज मार्गपर,चल मृत्यु से अम्रित की ओर
दीपस्तंभ तुमही हो, तुमही बुद्ध ग्यान, जान॥३॥

कैलाश से ओम्‌‍कार की, ध्वनित गुंज को सुनो
उदधियों की गाज में, विनित अर्चना सुनो॥
आसिंधु सिंधू भूमि ने तो, कबसे ली है ठान, आज॥४॥

कभी न थे विकलांग तुम, हिमाद्री से उत्तुंग तुम
क्लैब्य को तुम छोड दो, पुरुषार्थ से हो युक्त तुम
जरा से न डर जरा, उठो युवा-रक्त तुम
दासता के डोर तोड, सदियों से हो मुक्त तुम॥५॥

उत्तिष्ठत ! जाग्रत !! प्राप्य वरान्‌‍, निबोधत !!!
जयतु भारत, भाग्यशाली.. जय हो तेरी तेजरत !!!
जय हो तेरी तेजरत, जय हो तेरी तेजरत…!