सपने छोडें? (हिंदी)

पग पग पगले कहे गए तो
हम क्या अपने सपने छोडें?॥ध्रु.॥

यौवन की नव उमंग लेकर
उरके भीतर आग लगाकर
आसमान के फटे चीथडे
फिरसे चले जुटाने हैं, अब
पग पग पगले कहे गए तो
हम क्या अपने सपने छोडें?॥१॥

नवल स्फूर्ति के गान रचाकर
साँसों का संगीत बनाकर
स्पन्दन का चिर ताल दिलाकर
गगन भेदने निकले हैं, अब
गली गली गूँगों की है तो
हम क्या अपने गीत मरोडें?॥२॥

मरू में नन्दन चले बसाने
चाहे जग अटकावे रोडे;
चिन्ता दुनिया के घर की लें
घर के बाहर निकले है, अब
पग पग ठोकर यही हाल तो
हम क्या अपने पग ही मोडें?॥३॥

किसने कलियों का वर चाहा?
किसने चाही मिट्टी दौलत?
रंग-रूप-रस-शब्द-स्पर्श से
भरे विश्व को भुला दिया, अब
पल पल माँगे त्याग भला तो
हम क्या अपना प्रण ही तोडें?॥४॥