वैचारिक

Changes in Teaching Methodology

Methods of teaching JP wants to shift the emphasis on formal academic education for intellectual development to a combination of formal, non-formal and informal education by multiple agencies for all-round personality development. This shift in perspective needed many modifications in teaching academic subjects in class-room environment. The modifications were first tried out in the JP […]

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Livelihood and Values

Education for livelihood All-round education at the conceptual level and academic exam-oriented education at the practical level is the way most schools think about education today. According to JP, spiritual education is the prime component of all-round education. It is concerned with the ultimate objective of education. The physical, emotional, intellectual and social development is

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सुदिनं सुदिनम् (संस्कृत)

सुदिनं सुदिनं जन्मदिनं तव|भवतु मंगलं जन्मदिनम्‌‍ ॥विजयी भव सर्वत्र सर्वदा |विजयी भव सर्वत्र सर्वदा |जगति भवतु तव सुयशो गानम्‌‍ ॥सुदिनं सुदिनं जन्मदिनं तव |भवतु मंगलं जन्मदिनम्‌‍ ॥

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शुभचिंतन प्रार्थना (संस्कृत)

शुभचिन्तनमस्तु अद्य जन्मदिने ते|नन्दाम: गायाम: जन्मदिने ते॥ध्रु.॥दिने दिने वर्धस्व प्राप्नुहि यश:तव मार्गे अस्तु सदा धवलप्रकाश:अभिनन्दनमस्तु अद्य जन्मदिने ते॥१॥आयुष्मन्‌‍ शतं जीव चिरंजीव रेलोकमित्रमिति कीर्तिस्तव सदाऽस्तु रेनिरामयं निर्व्याजं हसितमस्तु ते॥२॥सर्वेषाम्‌‍ अद्याशी: सुखं प्राप्नुहिसद्गुणसम्पद्‌‍ लसतु सर्वदा त्वयिआशीर्युत हस्तो मे अस्तु मस्तके ॥३॥

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हे निवेदिते माते

हे निवेदिते माते मूर्त तू रूप ज्ञानदेचेगुरुचरणी जे समर्पिले ते जीवन तव समिधेचे॥ध्रु.॥ धवलधारिणी तू तपस्विनीचेतनामयी तू सौदामिनीहाती स्मरण देतसे अंगीकृत कार्याचे॥१॥ विजयध्वजा तू वैराग्याचीधुरंधरा तू जनशक्तीचीतव प्रतिभेचा परिस लाभता सोने सकल कलांचे॥२॥ स्थिर चित्ता तू कर्मयोगिनीनित्य व्रतस्था तू तेजस्विनीतुझ्या तीथ अवतरले शुभ पश्चिम अन्‌‍ पूर्वेचे॥३॥ भारत ज्योतींची तू दीप्तीकालीची तू अभया मूतचंदन ज्वाले फुले

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जाग हे शार्दूल (हिंदी)

जाग हे शार्दूल जाग, जाग हे पुराणपुरुषसदियों की निंद छोड, आत्मवंचना को त्याग,जाग हे पुराणपरुष, जाग हे शार्दूल जाग॥ध्रु.॥ शृंखला में बद्ध हो, विद्ध हो परचक्र सेमूर्छना से बेखबर, और गलित गात्र सेवेदि में अंगार तेरे, छानलो ये राखराख॥१॥ धर्म तेरे प्राण है, अध्यात्मही अभिमान हैवेद तेरी शान और, वेदान्तही पहचान हैआत्मग्लानि से जगो, तब

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